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रुपये की रिकॉर्ड गिरावट, औपचारिक रोजगार में कमी: फिर भी आर्थिक मजबूती की उम्मीद

भारत की अर्थव्यवस्था इस समय दोहरी मार झेल रही है, जहां एक ओर भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है, वहीं दूसरी ओर औपचारिक रोजगार सृजन में लगातार कमी देखी जा रही है। यह स्थिति व्यापारिक तनावों और विदेशी पूंजी के बहिर्वाह से और जटिल हो गई है। फिर भी, भारत की मजबूत आर्थिक वृद्धि और नियंत्रित मुद्रास्फीति दरें भविष्य में सुधार की संभावनाओं को बल दे रही हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) और सरकार की नीतिगत पहल इस संकट को संबोधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

हाल के दिनों में भारतीय रुपये ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 88.33 का रिकॉर्ड निम्न स्तर छुआ, जो पिछले सत्र के 88.3075 के निचले स्तर को पार कर गया। मंगलवार को यह 88.18 के आसपास बंद हुआ।  इस गिरावट का प्रमुख कारण अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर लगाए गए 50% तक के टैरिफ हैं, जिसने निवेशकों में अनिश्चितता बढ़ाई है। इसके परिणामस्वरूप, पिछले कुछ सत्रों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने भारतीय इक्विटी बाजारों से लगभग 2.7 बिलियन डॉलर की निकासी की है। 

विश्लेषकों का कहना है कि रुपये की कमजोरी वैश्विक और घरेलू कारकों का मिश्रण है। अमेरिकी डॉलर का मजबूत होना, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें, और भारत का बढ़ता चालू खाता घाटा इस अवमूल्यन को बढ़ावा दे रहे हैं। इसके अलावा, वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंकाएं, विशेष रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियों और ब्रिक्स देशों पर 100% टैरिफ की धमकी ने बाजारों में अस्थिरता को और बढ़ा दिया है। आरबीआई ने रुपये को सहारा देने के लिए हस्तक्षेप किया है, जिसमें राज्य संचालित बैंकों के माध्यम से डॉलर की बिक्री शामिल है। फिर भी, यह पर्याप्त नहीं रहा, और रुपये ने 1991 के बाद से अपनी सबसे कमजोर स्थिति दर्ज की है। 

औपचारिक रोजगार में कमी: एक चिंताजनक रुझान

रुपये की कमजोरी के साथ-साथ, भारत का औपचारिक रोजगार क्षेत्र भी संकट का सामना कर रहा है। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के तहत औपचारिक रोजगार सृजन में लगातार दो वर्षों तक गिरावट दर्ज की गई है। वित्त वर्ष 2023 में 13.1 मिलियन नौकरियों के सृजन के बाद, यह संख्या वित्त वर्ष 2025 में घटकर 12.9 मिलियन रह गई। यह कमी विशेष रूप से युवा कार्यबल के लिए चिंताजनक है, जो भारत की जनसांख्यिकीय संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

रोजगार सृजन में कमी का संबंध निर्यात में मंदी और वैश्विक व्यापार प्रतिबंधों से है, जो विशेष रूप से कपड़ा और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों को प्रभावित कर रहे हैं। इसके अलावा, निजी क्षेत्र में निवेश की कमी और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को अपर्याप्त समर्थन ने इस स्थिति को और गंभीर बना दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को एमएसएमई और बुनियादी विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जो रोजगार सृजन का प्रमुख स्रोत हैं।

चुनौतियों के बीच आशा की किरण

इन नकारात्मक रुझानों के बावजूद, भारत की अर्थव्यवस्था में कुछ सकारात्मक संकेत भी मौजूद हैं। हाल के तिमाही आंकड़ों में भारत की जीडीपी वृद्धि 7.8% रही, जो वैश्विक स्तर पर कई प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं से बेहतर है।  इसके अलावा, मुद्रास्फीति को 2%-6% की आरबीआई की स्वीकार्य सीमा के भीतर नियंत्रित रखा गया है, जो नीतिगत लचीलेपन की गुंजाइश प्रदान करता है। यह मजबूत आर्थिक आधार सरकार और आरबीआई को इन चुनौतियों का सामना करने के लिए रणनीतिक उपाय करने का अवसर देता है।

भारत और अमेरिका के बीच चल रही द्विपक्षीय व्यापार समझौता (बीटीए) वार्ताएं भी आशा की एक किरण प्रदान करती हैं। वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में कहा कि भारत पहले ही ऑस्ट्रेलिया, यूएई, मॉरीशस, यूके और ईएफटीए जैसे देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर कर चुका है। यदि भारत-अमेरिका व्यापार वार्ताएं सफल होती हैं, तो यह टैरिफ संबंधी अनिश्चितताओं को कम कर सकती हैं और रुपये को स्थिर करने में मदद कर सकती हैं।

भविष्य की राह: नीतिगत हस्तक्षेप और सुधार

विश्लेषकों का मानना है कि रुपये की स्थिरता और रोजगार सृजन में सुधार के लिए ठोस नीतिगत कदमों की आवश्यकता है। आरबीआई की मौद्रिक नीति समीक्षा, जो इस सप्ताह होने वाली है, इस दिशा में महत्वपूर्ण होगी।  विशेषज्ञों का सुझाव है कि रुपये को बहुत अधिक अवमूल्यन से बचाने के लिए आरबीआई को अपनी विदेशी मुद्रा भंडार रणनीति को संतुलित करना होगा। साथ ही, सरकार को निर्यात-उन्मुख क्षेत्रों को बढ़ावा देने और एमएसएमई के लिए प्रोत्साहन बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए।

रोजगार सृजन के मोर्चे पर, सरकार को बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और छोटे पैमाने के उद्योगों में निवेश को प्राथमिकता देनी चाहिए। शिक्षा और कौशल विकास में निवेश भी युवा कार्यबल को अधिक रोजगार योग्य बनाने में मदद करेगा। इसके अलावा, वैश्विक व्यापार चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत को अपने निर्यात बाजारों में विविधता लाने की आवश्यकता है।


Vikas kumar | September 2, 2025 | Country | India